Hindī ālocanā kā saiddhāntika ādhāraSacina Prakāśana, 1988 - 638 sivua |
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अनुभूति अपनी अपने अर्थ अलंकार आ० शुक्ल आचार्य आदि आधार आधुनिक आलोचना इन इस इस प्रकार इसी उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने एक एवं ओर और कर करते हुए करते हैं करने कला कल्पना कवि कविता कहा का काव्य काव्य के काव्यशास्त्र किन्तु किया है की की है कुछ के कारण के लिए के साथ को गया है चर्चा चिन्तन छन्द जा जाता है जी जीवन जो डॉ० तक तथा तो था थी थे दिया दृष्टि दृष्टि से दोनों द्वारा द्विवेदी ध्यान नगेन्द्र नये नवीन नहीं है ने पर परम्परा पाश्चात्य पृ० प्रभाव प्राचीन बहुत भारत भारतीय भाव भाषा भी मानते हैं मूल मूल्यों में में ही यह यहां यही या युग रस रहा है रही रहे हैं रूप में वह वही विचार विवेचन वे शक्ति शब्द शास्त्र संस्कृत सभी समीक्षा सम्बन्ध साहित्य सिद्धान्त से हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ है और है कि हो होता है होती होने